(क)
बिक्रम, मरघट बनिगा देश !
पंडित, जोगी, शायर, आलिम बाँटत नितहिं कलेस
लोगाँ मरैं, बजर परि जावे डोलत नाहिं गनेस
मुरदा ऊपर मुरदा बैठा, लहू लत्त्फथ केस
राजघाट, जनपथ, संसदिया बड़े-बड़े व्योपारी
जमुना-गंगा भात दाल संग मानुस की तरकारी
शमसाने बिच ठीहा नितहीं चाम उतारन जारी
फिर हारी हौव्वा की बिटिया, फिर हारी फिर हारी
मन पाथर तन पाथर, कविता से ना लगिहैं ठेस
कंकरीट की सड़क-आदमी, पार उतरिहैं देस
(ख)
बिक्रम, डेटा फलम् रसीला
स्मृति औ इतिहास हीन पृथ्वी को कर चपटीला
सब तथ्यों से सत्य चूस ले छुपा शक्ति की ओट
जन-गण-मन की खाल खींच, भर भूस, बना रोबोट
डेटा बारिश मांझ मुदितमन मोबाइल का प्लान
जँह विकास, तँह दंगा, हत्या, लूट-खसोट प्रमान
डेटा हत्या, बलात्कार, डेटा दंगा, संवेदन
क्षिति जल पावक गगन हवा, सबका कर डेटा भेदन
जन मन के लहरिल दुख सागर में डेटा की नाव
बढ़े कूटती ताल वक्ष पर, अपरंपार प्रभाव
(ग)
बिक्रम, धारे रहियो लाश!
तुम राजा, तुमको लाशन से बड़ी-बड़ी अभिलाष
काश्मीर है नार्थ-ईस्ट है छत्तीसगढ़ अलबेला
औ बिदर्भ, जँह बारहमासा है लाशों का मेला
बिना लाश का राजा कैसा, बिन मसान की रानी
बिन हत्या का लोकतंत्र क्या, बिना लहू जस पानी
टीवी चैनल इंटरनेट से मूँडी काटो खच्च
लोगाँ हँसे दरद नहिं होता कैसी सुंदर सच्च
इनहीं के चमड़ा से बिक्रम, तंबू यक बनवावो
देसे भीतर सब सेजन के ऊपर में तनवावो
(घ)
बिक्रम, पश्चिम दिशा महान
वहीं पावेगो शक्ति अपरिमित, सत्ता-संयुत ज्ञान
टका-बरक्कत, पूँजी-पगहा, हत्या कै सामान
जो सत्ता हित शुभ-ताकतवर, देंगें अफलातून
तोप, मिसाइल, परमानू बम, न्याय, अनाज, कनून
देवि लिबर्टी, रक्त-चषक कर, भरो दोनो हीं जून
इतना फाजिल जनता रक्कत, बढ़ता ज्यों नाखून
राष्ट्र चलावें वही, धरो तुम नित्य दलाली भेष
उनके मर्जी देशे भीतर रच दो उप्पनिवेश
जबरजंग मालिक तुम्हार तुम स्वामिभक्त रखवार
वँह खाओ, यँह आ गुर्राओ, सजा रहे दरबार
(च)
बिक्रम, बैतालन कै टोली !
हमी चलावेंगे तुम्हरी सत्ता की खातिर गोली
बरमेसुर को गांधी कह दें, गांधी को हत्यारा
नरमेधों के यज्ञ-कुंड में हम छोपेंगे गारा
हमहीं तुमको नियम सुझाएँ, यू ए पी ए, पोटा
नन्हें-नन्हें मानुष छौने, गला हमीं ने घोटा
दो-दो दिल, दो-दो दिमाग, दो पेट और दो गले
हत्या-पश्चाताप अनवरत साथ-साथ यूँ चले
शास्त्र हमारा, शस्त्र तुम्हारा, हम कंघी, तुम केश
राष्ट्रद्रोह के दावानल में, पलटो भूनो देश
(छ)
बिक्रम, छोटे-छोटे युद्ध !
डरो, एकजुट हुए अगर तो मस्तक होगा रुद्ध
छोटे-छोटे खांडे तुम्हरी बड़ भीषण रजधानी
में घुस काटम् पीट करैंगे, जनता है दीवानी
इसे अलग-अलगावो, डिब्बा-बंद करो हे राजा
जल-थल-जंगल-हवा छीन कर मृत्यु उदर भरता जा
आँखों की तकलीफत नदियाँ, बड़वानल की भूमि
मिलना चाहे रुंधती छतियाँ, लहर-बहर कर चूमि
महिला, दलित, आदिवासी, मुस्लिम, किसान, मजदूर
क्रम-क्रम से वध होय, अकंटक राज भोग भरपूर
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